Wednesday, June 25, 2025
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जन्माष्टमी 2025: तारीख,तिथि, इतिहास और उत्सव

कृष्ण जन्माष्टमी एक हिंदू त्योहार है जो सनातन धर्म में सर्वोच्च भगवान, विष्णु के आठवें अवतार, भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव है। यह सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है ,और पूरे भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

यह त्यौहार भाद्रपद महीने के अंधेरे पखवाड़े के आठवें दिन मनाया जाता है, जो अगस्त या सितंबर में पड़ता है। इस दिन, कृष्ण मंदिरों को फूलों, रोशनी और अन्य उत्सव की वस्तुओं से सजाया जाता है। भक्त उपवास करते हैं और कृष्ण से प्रार्थना करते हैं। कई भक्त उनके जन्म का जश्न मनाने के लिए पूरी रात जागते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था।

कृष्ण सनातन धर्म में एक लोकप्रिय देवता हैं, जिनकी पूजा उनके चंचल और शरारती स्वभाव के साथ-साथ उनकी बुद्धि और करुणा के लिए की जाती है। उन्हें प्रेम, करुणा और चंचलता का अवतार माना जाता है। वह अपनी शरारतों और बाधाओं को दूर करने की क्षमता के लिए भी जाने जाते हैं। कृष्ण के जीवन की कथायें रोमांच से भरपूर हैं।

जन्माष्टमी 2025 की तिथि और समय:

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 15 अगस्त 2025 को सुबह 02:40 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 16 अगस्त 2025 को सुबह 12:01 बजे
  • रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 15 अगस्त 2025 को रात 11:25 बजे
  • रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 17 अगस्त 2025 को सुबह 12:11 बजे

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त:

  • 15 अगस्त 2025 को रात 12:01 बजे से 12:45 बजे तक
  • अवधि: 44 मिनट

उपवास प्रकार:

  • स्मार्त/गृहस्थों के लिए जन्माष्टमी – 15 अगस्त 2025
  • वैष्णव (निर्मल व्रती/संन्यासी) के लिए – 16 अगस्त 2025

विशेष परंपराएँ:

झूला सजाना, माखन-मिश्री का भोग, रासलीला आयोजन, और रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म की पूजा मुख्य आकर्षण होते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी एक खुशी का त्योहार है, जो दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। यह अपने प्रिय देवता के जन्म का जश्न मनाने, अपने विश्वास की पुष्टि करने और परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का समय है।

यह त्यौहार सभी भक्तों के लिए कृष्ण की शिक्षाओं पर विचार करने की शिक्षा देता है। कृष्ण एक बुद्धिमान शिक्षक हैं जिन्होंने अपने अनुयायियों को प्रेम, करुणा और दूसरों की सेवा का महत्व सिखाया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को अधिक पूर्ण और सार्थक जीवन जीने में मदद कर सकती हैं।

हिंदू जन्माष्टमी पर उपवास, भजन-गायन, सत्सङ्ग-कीर्तन, विशेष भोज-नैवेद्य बनाकर प्रसाद-भण्डारे के रूप में बाँटकर, रात्रि जागरण और कृष्ण मन्दिरों में जाकर मनाते हैं। प्रमुख मंदिरों में ‘भागवत पुराण’ और ‘भगवद गीता’ के पाठ का आयोजन होता हैं। कई समुदाय नृत्य-नाटक कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिन्हें रास लीला वा कृष्ण लीला कहा जाता है। रास लीला की परम्परा विशेष रूप से मथुरा क्षेत्र में, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मणिपुर और असम में और राजस्थान और गुजरात के कुछ भागों में लोकप्रिय है। कृष्ण लीला में कलाकारों की कई दलों और टोलियों द्वारा अभिनय किया जाता है, उनको स्थानीय समुदायों द्वारा उत्साहित किया जाता है, और ये नाटक-नृत्य प्रत्येक जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले आरम्भ हो जाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी मनाने के कई अलग-अलग तरीके हैं। कुछ लोग ऐसे ग्रंथ पढ़ते हैं जो कृष्ण के जीवन की कहानी बताते हैं, तो कई लोग उनकी प्रशंसा में कृष्ण भजन गाते हैं।कृष्ण जन्माष्टमी पर एक लोकप्रिय परंपरा दही-हांडी या मटकी-फोर है, यानी दूध और दही से भरे मिट्टी के बर्तन को फोड़ना। यह बुराई के विनाश के प्रतीक के रूप में किया जाता है। यह भगवान के प्रति भक्त के प्रेम का भी एक भाव है , क्योंकि कृष्ण अपने शरारती बचपन के लिए जाने जाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सभी के घरों में भगवान कृष्ण की सुंदर मूर्तियां सजाई जाती हैं। बच्चे कृष्ण और राधा बनते हैं। धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। वृंदावन और मथुरा में तो बहुत ही धूम-धाम से यह त्योहार मनाया जाता है।

जन्माष्टमी की रात को जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय खास पूजा और आरती होती है। भजन-कीर्तन होते हैं। भक्त लोग उपवास रखते हैं और रात भर जागते हैं। मंदिरों में रासलीला, झूला और दूसरे धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।

जन्माष्टमी पर गोवर्धन पूजा और दही हांडी जैसे रस्मों का भी आयोजन किया जाता है। दही हांडी में, एक बड़े बर्तन में दही भरी जाती है और उसे ऊपर लटका दिया जाता है। फिर लोग मिलकर उस बर्तन को तोड़ने की कोशिश करते हैं। यह भगवान कृष्ण के बचपन की ‘दही हांडी’ लीला की याद दिलाता है।

इस तरह, जन्माष्टमी सिर्फ भगवान कृष्ण के जन्म का त्योहार नहीं है। यह भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह त्योहार हमें भगवान कृष्ण के जीवन और उनके उपदेशों की याद दिलाता है। यह हमें भक्ति, प्रेम और धर्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।

कृष्ण ही सत्य हैं, कृष्ण अनंत हैं, कृष्ण अनादि हैं, कृष्ण भगवंत हैं, कृष्ण शक्ति हैं, कृष्ण ही भक्ति हैं।

जनमाष्टमी, भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव, भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. इस दिन को मनाने का तरीका कई स्थानों पर अलग-अलग है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा सिखाए गए महान विचारों को याद करना है। भगवान कृष्ण का जीवन और उनके विचार हमें जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन देते हैं।

कर्म करो, फल की चिंता मत करो

भगवान कृष्ण का एक प्रमुख संदेश है कि हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, और उनके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। जैसे गीता में कहा गया है, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” इसका मतलब है कि हमें अपने काम को ईमानदारी से करना चाहिए और उसके परिणाम के बारे में सोचने की बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। अगर हम अपने कर्म पर ध्यान देंगे, तो फल भी खुद-ब-खुद अच्छा होगा।

सच्चे मित्र वही होते हैं जो समय पर साथ दें

श्री कृष्ण ने यह भी सिखाया कि सच्चे मित्र वही होते हैं, जो कठिन समय में आपके साथ खड़े रहते हैं. जैसे उन्होंने अपने मित्र अर्जुन की सहायता की, वैसे ही हमें भी अपने सच्चे मित्रों की पहचान करनी चाहिए और उनका साथ देना चाहिए। सच्ची मित्रता किसी भी स्थिति में साथ देने से ही साबित होती है।

भगवान कृष्ण ने हमें सिखाया है कि नफरत से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रेम और सहानुभूति है, जैसे उन्होंने राक्षसों और असुरों के साथ भी दया और प्रेम का व्यवहार किया, वैसे ही हमें भी दूसरों के प्रति अपनी भावनाओं को सकारात्मक रखना चाहिए।

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है, “जो स्वयं को जानता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है” इसका मतलब है कि हमें पहले खुद को जानना और समझना चाहिए। अपनी शक्तियों और कमजोरियों को पहचानकर ही हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

कभी-कभी जीवन में मुश्किलें आती हैं, लेकिन भगवान कृष्ण ने हमें सिखाया है कि हर मुश्किल के पीछे एक अवसर छिपा होता है, जैसे कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में नई ऊर्जा दी और उन्हे उनके डर को पार करने में मदद की, वैसे ही हमें भी अपनी समस्याओं को अवसर के रूप में देखना चाहिए।

‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे’ मन की शांति और कान्हा की भक्ति में लीन होने के लिए इस मंत्र का जाप जरूर करें। ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ भगवान श्रीकृष्ण का यह मंत्र बेहद लोकप्रिय है। मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से जातक के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।

जन्माष्टमी पर्व लोगों द्वारा उपवास रखकर, कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात्रि में जागरण करके मनाई जाती है। मध्यरात्रि के जन्म के उपरान्त, बाल गोपाल को स्नान कराया जाता है,वस्त्र पहनाया जाता है , फिर एक पालने में रखा जाता है। भक्त प्रसाद और मिठाई बांटकर अपना उपवास पूरा करते है।

श्रीकृष्ण का सप्तदशाक्षर महामंत्र जपने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी जी का आशीर्वाद मिलता है। इस सप्तदशाक्षर ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा महामंत्र को पांच लाख बार जपने से सिद्ध हो जाता है। जप के समय हवन का दशांश अभिषेक का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करने का विधान करना चाहिए। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला व्यक्ति करोड़पति बन जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण का सात अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र गोवल्लभाय स्वाहा है। ऐसे साधक जो इस मंत्र को जपते हैं उसे दुनिया की सभी सिद्धियां मिलती हैं। ऐसा व्यक्ति जो धन की कामना करता है, उसे निरंतर इस मंत्र का जाप करना चाहिए। मान्यता है कि इस सप्ताक्षरीय मंत्र का सवा लाख जप करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

भगवान श्रीकृष्ण का दशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र धन धान्य की प्राप्ति कराता है। इस क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः मंत्र के जाप से संसार की सभी सिद्धि मिलती हैं। यह मंत्र तेजी से आर्थिक सफलता के द्वार खोलता है। इस मंत्र के प्रभाव से धन-धान्य में वृद्धि होती है।

भगवान श्रीकृष्ण का द्वादशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय है। मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से प्रेम विवाह की बाधाएं दूर होती हैं। इस मंत्र के जप से चमत्कारिक फायदा होता है।

भगवान श्रीकृष्ण का 22 अक्षरों वाला मंत्र व्यक्तित्व आकर्षक बनाता है। इससे वाणी अच्छी बनती है। ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ह्र्सो इस मंत्र का जाप वागीशत्व (वाणी का वरदान) प्रदान करता है।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री मंत्र चमत्कारिक लाभ देता है। 23 अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र के जप से उसके जीवन की हर बाधा दूर होती है। जो भी साधक इस मंत्र का जपता है उसे धन प्राप्ति होती है।

इस्कॉन जन्माष्टमी का जश्न पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन मंदिर के हॉल को सुगंधित फूलों से सजाया जाता है। पूरे दिन कीर्तन और पवित्र नाम का जाप होता है। यहां तक कि कृष्ण के जीवन की अलग-अलग घटनाओं पर आधारित रासलीला भी की जाती है। इसके अलावा, घरों में भी जश्न मनाया जाता है।

श्री कृष्ण, दिव्य गुरु हैं जो अंधकार को दूर करते हैं और लोगों के हृदय में ज्ञान का दीप जलाते हैं तथा हमें आनन्द, आशा और आत्मविश्वास के साथ जीवन जीने का मार्गदर्शन देने के लिए सदैव हमारे साथ रहते हैं

जन्माष्टमी जैसे त्यौहार लोगों को एक साथ लाने और शांति, प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जब जब धरती पर पाप और अधर्म हद से ज्यादा बढ़ा है, भगवान ने धरती पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए धरती पर अवतरित हुए। विष्णु जी का एक अवतार श्रीकृष्ण थे। मथुरा की राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में जन्में कान्हा का बचपन गोकुल में माता यशोदा की गोद में बीता। राजा कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने कान्हा के जन्म के बाद ही उन्हें अपने चचेरे भाई नंदबाबा और यशोदा को दे दिया था। श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से लेकर जीवन के हर पड़ाव पर चमत्कार दिखाए। श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कई किस्से हैं, जो मानव समाज को सीख देते हैं। अधर्म और पाप के खिलाफ सही मार्गदर्शन करते हैं। उनके जन्मदिवस को उत्सव की तरह हर साल भक्त मनाते हैं।

भारत में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बहुत ही धूमधाम और श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भाई कंस के अत्याचार को कारागार में रह सह रही बहन देवकी ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अपनी आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कंस के अत्याचार और आतंक से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। इसी कथा के अनुसार हर साल भाद्रपद की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।

पुराणों के अनुसार , श्रीकृष्ण त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु के अवतार हैं। कृष्ण के आशीर्वाद और कृपा को पाने के लिए हर साल लोग इस दिन व्रत रखते हैं, मध्य रात्रि में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं और जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर जन्माष्टमी पर दही-हांडी का भी उत्सव होता है।

जन्माष्टमी पर भक्त श्रद्धानुसार उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। बाल गोपाल की जन्म मध्य रात्रि में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी की तिथि की मध्यरात्रि को घर में मौजूद लड्डू गोपाल की प्रतिमा का जन्म कराया जाता है। फिर उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। फूल अर्पित कर धूप-दीप से वंदन किया जाता है। कान्हा को भोग अर्पित किया जाता है। उन्हें दूध-दही, मक्खन विशेष पसंद हैं। इसलिए भगवान को भोग लगाकर सबको प्रसाद वितरित किया जाता है।

कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। विशेषकर इसका महत्व गुजरात और महाराष्ट्र में है। दही हांडी का इतिहास बहुत दिलचस्प है। बालपन में कान्हा बहुत नटखट थे। वह पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। कन्हैया को माखन और दही बहुत प्रिय था। उन्हें माखन इतना प्रिय था कि वह अपने सखाओं के साथ मिलकर गांव के लोगों के घर का माखन चोरी करके खा जाते थे। कान्हा से माखन बचाने के लिए महिलाएं माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटका दिया करती, लेकिन बाल गोपाल अपने सखाओं के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर उसके जरिए ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चोरी कर लेते। कृष्ण के इन्ही शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग दिया जाता है। लड़के नाचते गाते पिरामिड बनाते हुए मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते हैं। इसे दही हांडी कहते हैं, जो लड़का ऊपर तक जाता है, उसे गोविंदा कहा जाता है।

सभी के कलयाण की कामनाओं के साथ

Credit:

लेखिका: बिट्टू मिश्रा Bittu Mishra

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