रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो भाई-बहन के बीच प्रेम, सुरक्षा और कर्तव्य के संबंध को मनाने के लिए समर्पित है। “रक्षाबंधन” शब्द का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन”। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो एक धागा होता है, और अपने भाई की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करतीं हैं। बदले में भाई अपनी बहनों की सुरक्षा और उनकी देखभाल का वचन देतें हैं।
हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मंत्र है। )
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का अर्थ है, – “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना।
रक्षाबंधन 2025 की तिथि और समय:
- तिथि: शनिवार, 9 अगस्त 2025
- पंचमी तिथि प्रारंभ: 9 अगस्त 2025 को सुबह 03:12 बजे
- पंचमी तिथि समाप्त: 10 अगस्त 2025, सुबह 12:46 बजे
- पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 10:44 बजे से शाम 07:10 बजे तक
इस त्यौहार से जुड़ी किंवदंतियों में से एक महाकाव्य महाभारत से उत्पन्न होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से गलती से कट गई थी। यह देखकर द्रौपदी ने खून के बहाव को रोकने के लिए अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर चोट पर बांध दिया। भगवान कृष्ण उनके हाव-भाव से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने हमेशा उनकी रक्षा करने का वचन दिया। उन्होंने यह वचन तब पूरा किया जब द्रौपदी को हस्तिनापुर के राज दरबार में सार्वजनिक रूप से अपमान का सामना करना पड़ा।
तब से रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के प्यार व भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन बहनें, भाइयों को राखी बांधती हैं और उन्हें मिठाइयां खिलाती हैं। वहीं, भाई इस दिन बहनों की रक्षा का बचन देते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं।ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है।यह एक ऐसा पावन पर्व है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।
स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत महापुराण में असुरराज दानवीर राजा बली ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था और ऐसे में उसका अहंकार चरम पर था। इसी अहंकार को चूर-चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार पर भिक्षा मांगने पहुंच गए।चूंकि राज बली महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग की । बली ने तत्काल हां कर दी, क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देना थी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि मैं तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बली ने कहा, भगवान आप मेरे सिर परअपना तीसरा पग रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया। लेकिन बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया।
भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी जी के पास जाना था ,लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गयीं । ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।
राखी बांधने की परंपरा के माध्यम से बहन अपने भाई से जीवनभर अपनी रक्षा का वचन मांगती है। भाई इस वचन को निभाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और बहन के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
रक्षाबंधन का संबंध श्रवण कुमार से भी है।
हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्योहार को लेकर कई मान्यताएं हैं। कहीं-कहीं इसे गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि यह त्योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्यु से भी जुड़ा है। इसलिए मानते हैं कि यह रक्षासूत्र सबसे पहले गणेशजी को अर्पित करना चाहिए और फिर श्रवण कुमार के नाम से एक राखी अलग निकाल देनी चाहिए।
एक कथा के अनुसार युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। वहीं अभिमन्यु युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था। वहीं द्रौपदी ने भी उनकी लाज बचाने वाले अपने सखा और भाई कृष्णजी को भी राखी बांधी थी। इस दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी।
पौराणिक कथाओं में पति-पत्नी के बीच भी राखी का त्योहार मनाने की परंपरा का वर्णन मिलता है। एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था तो देवताओं की हार होने लगी थी। तब देवराज की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। तब जाकर समस्य देवताओं के प्राण बच पाए थे।
एक कथा और भी प्रचलित है कि एक बार देवी लक्ष्मी ने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीने चर्तुमास के रूप में जाने जाते हैं जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक होते हैं।
रक्षाबंधन परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार परिवार में प्रेम, सहयोग और एकता को बढ़ावा देता है और उन्हें एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है।रक्षाबंधन न केवल भाई-बहन के रिश्ते को बल्कि समाज में प्रेम और सद्भावना को भी बढ़ावा देता है। यह त्योहार समाज में भाईचारे और एकता के भाव को प्रोत्साहित करता है।राखी एक साधारण धागा नहीं है, बल्कि यह बहन की भावनाओं, उसकी प्रार्थनाओं और उसके भाई के प्रति उसके अटूट विश्वास का प्रतीक है। यह धागा भाई-बहन के बीच के रिश्ते की मजबूती और स्थायित्व को दर्शाता है।रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं, आरती करती हैं, और मिठाई खिलाती हैं। यह प्रक्रिया भाई के प्रति बहन के स्नेह और आशीर्वाद को प्रकट करती है।
रक्षाबंधन का संबंध बादशाह हुमायूं से भी है। हुमायूं ने भी कर्णावती को बहन का दर्जा देकर उनकी जान बचाई थी। मध्य काल में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की खबर मिली, तो वह घबरा गईं। कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में सक्षम नहीं थीं। लिहाजा, उन्होंने प्रजा की सुरक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजी। तब हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के खिलाफ युद्ध लड़ा। हुमायूं उस समय बंगाल पर चढ़ाई करने जा रहे थे। लेकिन राखी की लाज रखते हुए वह रानी कर्णावती और मेवाड़ की रक्षा के लिए अपने अभियान को बीच में ही छोड़कर आ गए।
सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग करके वन्दे मातरम् के आन्दोलन से भड़की एक छोटी सी चिंगारी को शोलों में बदल दिया। 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षा बन्धन की योजना साकार हुई और लोगबाग गंगा स्नान करके सड़कों पर यह कहते हुए उतर आये-
सप्त कोटि लोकेर करुण क्रन्दन, सुनेना सुनिल कर्ज़न दुर्जन;
ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल, आमि स्वजने राखी बन्धन
भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है।रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं। ये लिफाफे अन्य लिफाफों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिजाइन भी अलग है जिसके कारण राखी इसमें ज्यादा सुरक्षित रहती है। डाक-तार विभाग पर रक्षाबन्धन के अवसर पर 20 प्रतिशत अधिक काम का बोझ पड़ता है। अतः राखी को सुरक्षित और तेजी से पहुँचाने के लिए विशेष उपाय किये जाते हैं और काम के हिसाब से इसमें सेवानिवृत्त डाककर्मियों की सेवाएँ भी ली जाती है। कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिये अलग से बाक्स भी लगाये जाते हैं। इसके साथ ही चुनिन्दा डाकघरों में सम्पर्क करने वाले लोगों को राखी बेचने की भी इजाजत दी जाती है, ताकि लोग वहीं से राखी खरीद कर निर्धारित स्थान को भेज सकें। लेकिन आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है।
आप सबों के कुशलता की कामना के साथ
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